Till Infinity..........
लड़का Engineer है .......
मौसी लड़का Engineer है ...
मौसी: हाय राम .. कुछ और नहीं मिला करने को ?
जय :कहाँ मौसी B.Tech करने के बाद कोई
अच्छी कंपनी लेती कहाँ है ..
मौसी :है है तो क्या B.Tech. भी किया है
जय :हाँ मौसी .. सोचा था B. Tech. करके
अच्छी जगह नोकरी मिल जायेगी ..
मौसी :ये B.Tech क्या होता है बेटा ..?
जय : मौसी ये 'बेरोजगार इंजिनियर' बनने के लिए
चार साल का कोर्से होता हे जहाँ पढाई के
अलावा हर वो काम होता हें जिसके लिए टीचर
और घरवाले मना करते हें ..
मौसी: डिग्री तो मिलती होगी न बेटा ?
जय : कहाँ मौसी डिग्री तो बहुत दूर ... रिजल्ट
का ही पता नही होता हें
मौसी :पेपर्स तो छपते होंगे ना उसके ?
जय : हाँ मोसी पर University
वी तो Engineers की हें ना .
मौसी : हाय राम.. बस यही एक
कमी बाकि थी..तो क्या university भी राम
भरोसे हें ?
जय : ना मोसी वो तो हर बार फीस टाइम पे
लेती हें ... बस बस डिग्री का पता नहीं
मौसी: अछा बेटा लड़का पढाई में केसा हें
जय :बस मोसी पुछो मत हर बार लिस्ट में टॉप
मरता हें निचे से..
मौसी :तो क्या अब तक 1 भी बार पास नही हुआ
जय :वो तो है .पर कभी कभी पास भी हो जाता है
मौसी : इसके बाद क्या करेगा ?
जय : अब मौसी एक बार बसंती से शादी हो जाये
तो कमाने वी लगेगा ..
मौसी:एक बात की दाद दूंगी बेटा भले लाख बुराई
हो तुमारे दोस्त में पर तुम्हारे मुह से तारीफ
ही निकलती हें ..
जय :अब क्या करू मोसी मेरा तो दिल ही कुछ
ऐसा हें ..में भी तो Engineer ही हु ना..
जय : तो मैं रिश्ता पक्का समझू मौसी
मौसी:बेटा , कान खोल के सुन ले , सगी मौसी हूँ
बसंती की,सौतेली माँ नही , चाहे
बसंती चपरासी चंदू से शादी कर ले पर B.Tech
वाले के साथ नहीं करेगी ...
तेरा इंतजार आज भी है
तुझे पा लेना मेरी बरसो की तमन्ना है
पर पा लेना शायद मेरी किस्मत नहीं
दिया जलाऊँ तेरी राहों मे मेरे बस मे नहीं
दिल जलना तेरे इंतजार मे ये कोई कम तो नहीं
वफ़ा हमने तुझसे की ये तुम्हारी किस्मत है
मेरी वफ़ा के तू लायक न है शायद ये हमारी किस्मत है
हसना हमने तुझे सिखाया ये हमारी मोहब्बत है
उम्र भर रोना हमे दिया ये तुम्हारी मोहब्बत है
साथ निभाने का वोह वादा वादाये वफ़ा है
साथ छोड़ देगी ये तेरी वफ़ा तो नहीं
चले तो हमसफ़र बनकर ये एक ही डगर है
शायद राह हो जायेगी अलग ये किसको खबर है
राह न छोड़ पाए तेरे लिए ये हमारी बेवफाई न है
तू किस मोड़ छोड़ चले ये हमारी वफ़ा की हद है
ताउम्र गुजार दी तेरे इंतजार मे
तू आई है और आके भी नी है
फकत तेरे प्यार कि खातिर सहे है कितने दुःख मैंने
फकत तेरे प्यार कि खातिर सहे है कितने दुःख मैंने
मगर ये दुःख भी सहकर भला मुझको मिला क्या
मिला जो भी मुझे वो मिला है बस अधूरा ही
अधूरा ही मिला सब जब ये दर्द फिर क्यों पूरा है
पूरे दिल से चाहत कि सनम तुमसे मुहब्बत की
मुहब्बत में मगर साजन तेरी मुझे मिला क्या
मगर ये दुःख भी सहकर भला मुझको मिला क्या
मिला जो भी मुझे वो मिला है बस अधूरा ही
अधूरा ही मिला सब जब ये दर्द फिर क्यों पूरा है
पूरे दिल से चाहत कि सनम तुमसे मुहब्बत की
मुहब्बत में मगर साजन तेरी मुझे मिला क्या
बेशर्मी अब बुरी आदत नहीं कहलाती
खौफ आसमान से बिजली गिरने का नहीं है,
डर जमीन के धसकने का भी नहीं है,
नहीं घबड़ाते सांप के जहर से
फिर भी दिल घबड़ाता है
इस बात से
रोज मिलने वाले इंसानों में
कोई शैतान तो नहीं है।
————
लोग नहीं बदलते चेहरा
बस, बयान बदल देते हैं,
बेशर्मी अब बुरी आदत नहीं कहलाती
कुछ मजबूरी
कुछ व्यापार बन गयी हैं बेदर्दी
लोग हालत बदलने के बहाने
अपनी अदायें बदल देते हैं।
———
डर जमीन के धसकने का भी नहीं है,
नहीं घबड़ाते सांप के जहर से
फिर भी दिल घबड़ाता है
इस बात से
रोज मिलने वाले इंसानों में
कोई शैतान तो नहीं है।
————
लोग नहीं बदलते चेहरा
बस, बयान बदल देते हैं,
बेशर्मी अब बुरी आदत नहीं कहलाती
कुछ मजबूरी
कुछ व्यापार बन गयी हैं बेदर्दी
लोग हालत बदलने के बहाने
अपनी अदायें बदल देते हैं।
———
संकलक लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
मधुशाला
मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।१।
प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।।२।
प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।।३।
भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।।४।
मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला,
भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला,
उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ,
अपने ही में हूँ मैं साकी, पीनेवाला, मधुशाला।।५।
मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला,
'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -
'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।'। ६।
चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला!
'दूर अभी है', पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला,
हिम्मत है न बढूँ आगे को साहस है न फिरुँ पीछे,
किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला।।७।
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।१।
प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।।२।
प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।।३।
भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।।४।
मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला,
भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला,
उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ,
अपने ही में हूँ मैं साकी, पीनेवाला, मधुशाला।।५।
मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला,
'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -
'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।'। ६।
चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला!
'दूर अभी है', पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला,
हिम्मत है न बढूँ आगे को साहस है न फिरुँ पीछे,
किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला।।७।
खेल बदलते वक्त का है
नज़र नज़र की बात है
खेल बदलते वक्त का है
जो कभी अश्कों के साथ बहा था
रंग आज भी लाल उस रक्त का है
पानी सा बह रहा है आज मगर
ना कोई दर्द ना कोई जज़्बात है
कसूर इन सुर्ख बून्दों का नहीं
ये तो नज़र नज़र की बात है।
चलती हुई हवाओं को
कोई आँधी कहे कोई झोंका
कोई उड् गया तूफ़ानों में
तो किसी ने तूफ़ानों को रोका
इन्हीं तूफ़ानों में फ़से थे कल तक
मगर आज सब कुछ शान्त है
आज हवा चले भी तो एहसास नहीं होता
बस नज़र नज़र की बात है।
कल कोई दिल का टुकडा था
आज ज़ख्म बन के रह गया
वो हर सपना जो कल संजोया था
आंसूओं के साथ बह गया
कल अंधेरों में भी उजाले थे
आज आठों पहर ही रात है
सूरज को कोई दोष ना देना
ये तो नज़र नज़र की बात है।
वही लौ जो रोशनी देती थी
खिडकी पे रखी बाती में
ना जाने कब वो आग बन गयी
मिटाया सब कुछ
जिसने क्रान्ति में
शमा के दो रूप देखता है वो ही
परवाना जो उसमें जलता है
नज़र नज़र की बात है सब कुछ
खेल बदल्ते वक्त का है॥
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